देवबंद - जंग-ए-आजादी में रेशमी रूमाल तहरीक के जरिए अहम किरदार निभाने वाली मुसलमानों की सबसे बड़ी तंजीम जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दोनों गुटों ने हाथ मिलाने की पहल कर दी है। आठ साल पहले अलग हुए चाचा अरशद मदनी व भतीजे महमूद मदनी ने इस बाबत कदम बढ़ा दिए हैं। जमीयत के इत्तिहाद की खबर से इस्लामिक हल्कों में खुशी की लहर है। 2007 में कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की जमीयत को निरस्त करने के चलते चाचा मौलाना अरशद मदनी और भतीजे मौलाना महमूद मदनी के बीच खाई पैदा हो गई थी। इसके बाद चाचा-भतीजे के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ी और जमीयत दो गुटों में बंट गई। मामला न्यायालय में जा पहुंचा।
एक पर मौलाना अरशद मदनी तो दूसरे गुट की कमान मौलाना महमूद मदनी ने संभाल ली। अरशद मदनी को एक गुट का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया, जबकि मौलाना महमूद मदनी ने कारी उस्मान मंसूरपुरी को अपने गुट का अध्यक्ष बनाया। इसके बाद चाचा और भतीजे की राह जुदा हो गई। बताया जाता है कि कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने दोनों गुटों को समझौता न होने पर किसी अन्य को जमीयत की कमान सौंपे जाने की बात कही थी। इसके बाद से ही दोनों गुटों के बीच बातचीत का दौर चल रहा है। आखिरकार बातचीत का यह सिलसिला रंग लाया। सूत्रों की मानें तो रविवार को दोनों गुटों के बीच अदालत में चल रहे केस को वापस लिए जाने और दिल्ली स्थित जमीयत के भवन के बंटवारे समेत अन्य कई महत्वपूर्ण ¨बदुओं पर समझौता हुआ। सूत्र बताते हैं कि 21 जनवरी को अदालत में समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।
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