नई दिल्ली : केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश किए जाने से तिलमिलाई कांग्रेस ने सोमवर को इस कदम के खिलाफ गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एकजुट करने की कवायद शुरू की। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि केंद्र का एजेंडा सभी गैर-भाजपा सरकारों को अस्थिर करना है।
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने पत्रकारों को बताया, ‘कांग्रेस इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने की खातिर एक याचिका तैयार कर रही है। यदि गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी इस मुद्दे को उठाएं तो यह बेहतर रहेगा।’ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में एक संवाददाता सम्मेलन में सिब्बल ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उसे संसद के आगामी बजट सत्र को सुचारू रूप से चलने देने में दिलचस्पी नहीं है और इसलिए उसने ऐसा कदम उठाया है जिससे इसकी ‘दमनकारी संघवाद’ की नीति नजर आती है।
सिब्बल ने केंद्र की ओर से नियुक्त किए गए आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले राज्यपालों को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा कि उन्होंने ‘आरएसएस के प्रचारक और केंद्र सरकार के विस्तारित हाथ के रूप में काम कर इस उच्च पद को छोटा कर दिया है।’ कांग्रेस नेता ने अपने आरोप को सही ठहराने के मकसद से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक, त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत रॉय, राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह, असम के राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य और कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के नाम का जिक्र किया। सिब्बल ने कहा, ‘केंद्र सरकार का एजेंडा राज्यपाल के पद के जरिए सभी गैर-भाजपा पार्टियों की अगुवाई में चल रही राज्य सरकारों को अस्थिर करना है। अरुणाचल प्रदेश तो सिर्फ एक उदाहरण है।’उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री के साथ-साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और आरएसएस भी इसमें शामिल है और इसलिए राज्यपाल ने ऐसा काम किया है।’ सिब्बल ने कहा, ‘गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर मोदी सरकार एक राज्य को अस्थिर करने के लिए राज्यपाल के पद का दुरूपयोग कर और फिर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश के बहाने से हमारे गणतंत्र के मूल्यों का जश्न मना रही है।’ उन्होंने कहा कि अरुणाचल पर राष्ट्रपति शासन ‘थोपना’ मोदी सरकार की ‘असहनशील मानसिकता’ को दिखाता है और ‘सहकारी संघवाद’ को कूड़ेदान में फेंक दिया गया है।’
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