भारत के ग्रामीण इलाकों में नवजात बच्चों के जन्म के समय उनका वजन कम होने का कारण घर के भीतर मौजूद प्रदूषण है. एक नए शोध में इसकी पुष्टि हुई है. डॉक्टरों का कहना है कि चूल्हा, लकड़ी, कोयला आदि जलाने से घर में वायु प्रदूषण फैलता है. इससे श्वसन तंत्र से जुड़ी तमाम बीमारियां फैलती हैं जिसकी सबसे अधिक शिकार महिलाएं होती हैं. गर्भवती महिलाओं का लगातार वायु प्रदूषण के संपर्क में रहना संतान में मस्तिष्क विकृति, अस्थमा और अनुचित वृद्धि से संबंधित है.
अपोलो हॉस्पिटल की गाइनोकोलॉजिस्ट बंदिता सिन्हा कहती हैं, “किसी भी महिला के लिए गर्भाधान और प्रसव के बीच का समय सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसे में महिला का वायु प्रदूषण के संपर्क में रहना संतान की मृत्यु का कारण भी हो सकता है. हालांकि गैस पर खाना बनाने वाली महिलाओं की संतान को भी न्यूमोनिया और कमजोर प्रतिरोधक क्षमता का सामना करना पड़ता है.”
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, हर साल लगभग 5 लाख लोग घर के भीतरी वायु प्रदूषण की वजह से अपनी जान गंवा देते हैं. जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे होते हैं.
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) का कहना है कि साल 2016-17 के बीच हमारा लक्ष्य ग्रामीण महिलाओं में एलपीजी और स्टोव का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करना है. इस तरह से वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी.
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