नई दिल्ली: सियाचिन के जांबाज लांस नायक हनुमंथप्पा का आज उनके पैतृक आवास कर्नाटक के धारवाड़ जिले के बेटादुर गांव में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार होगा. तीन दिन तक कोमा में रहने के बाद हनुमंथप्पा का कल दिल्ली के सेना अस्पताल में निधन हो गया था.
आज सुबह 10.30 बजे हनुमंथप्पा का पार्थिव शरीर धारवाड़ जिले के बेटादुर गांव में पहुंचेगा जहां जहां पूरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी.
आपको बता दें कि लांस नायक हनुमंथप्पा 3 फरवरी को अपने 9 साथियों के साथ बर्फ के तूफान की चपेट में आ गए थे. इस हादसे में उनके सभी 9 साथी शहीद हो गए थे. लेकिन 6 दिनों तक 25 फिट बर्फ की चट्टान में दबे रहने के बाद जिंदा निकले थे. इसके बाद हनुमंथप्पा का इलाज दिल्ली के आर्मी अस्पताल में चल रहा था.
डॉक्टरों के मुताबिक हनुमंथप्पा के कई महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और वो डीप कोमा में चले गए थे. हनुमंथप्पा के निधन से ना सिर्फ पूरा उनका परिवार और गांव के लोग बल्कि पूरा देश शोक में डूब गया है.
शहीद हनुमंथप्पा को श्रद्धांजलि
कल राजधानी में शहीद हनुमंथप्पा को श्रद्धांजलि देने के लिए नेताओं की भीड़ उमड़ी. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने शहीद हनुमंथप्पा को श्रद्धांजलि दी, थलसेना अध्यक्ष दलबीर सिंह सुहाग भी शहीद के पार्थिव शरीर को अंतिम विदाई देने पहुंचे.
इनके अलावा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी शहीद हनुमंथप्पा को श्रद्धांजलि दी. शहीद हनुमंथप्पा को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने कई जानी मानी हस्तियां शामिल हुई. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी शहीद हनुमंथप्पा की मां को पत्र लिखकर शोक व्यक्त किया है.
मद्रास रेजिमेंट के 33 वर्षीय सैनिक के परिवार में उनकी पत्नी महादेवी अशोक बिलेबल और दो वर्ष की एक बेटी नेत्रा कोप्पाड है.
आतंकियों से लड़कर और साथियों से हंसकर मिलते थे हनुमनथप्पा
बेहद निडर, उतने ही जोशीले और ऐसे कि बिना हिचके मौत की आंख में आंख डालने वाले-ऐसे थे लांस नायक हनुमनथप्पा. उन्होंने खुद से आगे बढ़कर एक से अधिक बार निहायत कठिन और खतरनाक जगहों पर तैनाती ली थी. कुल 13 साल की सैन्य सेवा में 10 साल उन्होंने ऐसी ही कठिन और खतरनाक जगहों पर सेवा दी थी.
बेहद निडर, उतने ही जोशीले और ऐसे कि बिना हिचके मौत की आंख में आंख डालने वाले-ऐसे थे लांस नायक हनुमनथप्पा. उन्होंने खुद से आगे बढ़कर एक से अधिक बार निहायत कठिन और खतरनाक जगहों पर तैनाती ली थी. कुल 13 साल की सैन्य सेवा में 10 साल उन्होंने ऐसी ही कठिन और खतरनाक जगहों पर सेवा दी थी.
कर्नाटक के धारवाड़ जिले के बेटाडुर गांव के हनुमनथप्पा 25 अक्टूबर 2002 को मद्रास रेजीमेंट की 19वीं बटालियन में शामिल हुए थे. वह 2003 से 2006 तक जम्मू एवं कश्मीर के माहौर में तैनात रहे और देश के खिलाफ होने वाले विद्रोह से निपटने में सक्रिय हिस्सेदारी की.
उन्होंने एक बार फिर खुद से जम्मू एवं कश्मीर में तैनाती ली. वहां 2008 से 2010 के दौरान उन्होंने आतंकवादियों से मुकाबलों में अपने अदम्य साहस का परिचय दिया था.
उन्होंने 2010 से 2012 तक पूर्वोत्तर में भी खुद को तैनात करने के लिए आगे किया था. वहां उन्होंने नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड और युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम (उल्फा) के खिलाफ अभियानों में हिस्सेदारी की.
हनुमनथप्पा 2015 अगस्त से सियाचिन में तैनात थे. उनकी तैनाती सोनम चौकी पर थी जिसे दुनिया की सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित चौकी माना जाता है. यहां पर तापमान माइनस 40 डिग्री तक चला जाता है और 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक से बर्फीली हवाएं चलती हैं. यहां पर 10 सैनिक तैनात थे. दुनिया की सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित हवाई पट्टी की निगरानी इनके जिम्मे थी. सियाचिन ग्लैशियर में तैनात सैनिकों के लिए सामान यहीं उतरता है.
यहीं पर 3 फरवरी को आए हिमस्खलन में हनुमनथप्पा समेत सभी 10 सैनिक बर्फ के नीचे दब गए. इनमें एक अधिकारी भी थे. नौ सैनिकों के शव निकले. हनुमनथप्पा जीवित निकले. वह अपने अन्य बहादुर साथियों के मुकाबले कुछ अधिक दिन जिए. गुरुवार को उनका भी निधन हो गया.
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