लखनऊ. राजधानी में बुधवार को होली के मौके पर चौक की मशहूर नवाबों के दौर की होली बारात निकली। यह रंगोत्सव बारात नवाबों के दौर से चली आ रही है।इसे बुधवार को कोनेश्वर चैराहे से उठाया गया।यह मेफेयर तिराहा होते हुए वापस चैक चौराहे पर आएगी। डीजे की धुन पर निकला होरियारों का हुजूम,हिंदू मुस्लिम एकता का दिखा माहौल...
- बुधवार को जैसे ही चौक से नवाबी दौर की फेमस होली बारात निकली लोगों में गजब का उत्साह दिखा।
- डीजे की धुन पर जैसे ही होरियारों ने पारंपरिक बारात उठाई, लोग खुशी से झूम उठे।
- इसमें आगे आगे ऊंट, घोड़े संग डीजे वाले भी चल रहे हैं।
- मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक दूसरे पर इत्र छिड़का, माला पहनाई और गुलाल हवा में उछालकर होली मनाई।
- चौक के होलिकोत्सव समिति के संयोजक अनुराग मिश्र ने बताया कि चौक की होली बारात हिंदू-मुस्लिम एकता का इतिहास समेटे है।
- उन्होंने बताया कि एक दौर था जब नवाबों के दौरान लोग केसर के रंगो से होली खेलते थे।
- समय और दौर बदला तो टेसू और पलाश के फूलों से बने रंग से लोग एक दूसरे को रंगने लगे।
- लेकिन, आजादी के बाद होली का स्वरूप बिगड़ गया और रंगों के जगह केमिकल और कीचड़ ने ले लिया। जिससे लोगों ने होली खेलना कम कर दिया।
- इसको देखते हुए यहां होरियारों ने सोचा कि कुछ किया जाए, ताकि आपसी सौहार्द और भाईचारा बना रहे।
- तब से ही यह बारात निकलती आ रही है।
- उन्होंने कहा कि लोग बड़ी संख्या में घरों से निकले हैं और जुलूस के रूप में होली खेल रहे हैं।
- पारंपरिक जुलूस कोनेश्वर चैराहे से निकलता है ओर वापस चैक पर आकर खत्म होता है।
होली-मोहर्रम-ईद एक साथ ही मनाते रहें हैं यहां के लोग
- पूर्व सांसद लालजी टंडन ने बताया कि लखनऊ हमेशा से ऐसी जगह रहा है जहां लोग होली-मोहर्रम-ईद एक साथ ही मनाते रहे है।
- बाद में इसका स्वरूप बदला तो इसे बदलने की ईच्छा जागी। फिर क्या था होली के दिन जहां पूरी नवाबी नगरी रंगों से सराबोर नजर आती है।
- चौक में निकलने वाला होली का जुलूस हिंदू-मुस्लिम एकता की नई इबारत लिखता नजर आता है।
- जहां होली के खुमार में डूबे होरियारों का मुस्लिम समुदाय के लोग स्वागत करते हैं।
- जुलूस में हाथी, घोड़ा ढोल-नगाड़े वाले सब रहते हैं।
- लालजी टंडन बताते हैं कि इस जुलूस ने लोगों के प्रति विश्वास और एकता के भाव भरे।
कृत्रिम रंगों से बचना चाहिए
- इस दौरान लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते, पान खिलाते देखे जा सकते हैं।
- लालजी टंडन बताते है कि पारंपरिक ढंग से होली खेलना स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है। पीतल के बडे हंडे में टेसू के फूल घोल कर रखे जाते हैं।
-पीतल की बड़ी पिचकारी और प्लास्टिक की पिचकारी में रंग भरकर एक-दूसरे को रंगों से सराबोर किया जाता है।
- जिसके बाद लोग उबटन लगाकर रंग उतारते हैं। इससे शरीर के किटाणु तो मरते ही हैं। सभी रोम-छिद्र भी खुल जाते हैं।
- टेसू से होली खेलने के पीछे उसके मेडिकल बेनिफिट हैं।
- टेसू-पलाश के औषधिय गुण से हर कोई वाकिफ है। हांलांकि होली पर कृत्रिम रंगों से बचना चाहिए।
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