भारत वर्ल्ड टी20 के सबसे अहम दावेदारों में एक है. इसको लेकर शायद ही किसी को संदेह होगा. वैसे भी घरेलू मैदान में खेलने का अतिरिक्त फ़ायदा तो होता ही है.
लेकिन हमें इसका ध्यान रखना चाहिए कि अब तक पांच वर्ल्ड टी20 के आयोजन में हर बार नया चैंपियन सामने आया है. ज़ाहिर है अपने फॉर्मेट के चलते यह टूर्नामेंट ऐसा बन गया है जिसके बारे में अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है.
इसके अलावा अब तक मेजबान टीम कभी चैंपियन नहीं बन सकी है. दक्षिण अफ्रीका में 2007 में आयोजित पहले टूर्नामेंट को भारत ने जीता था, इंग्लैंड में 2009 में पाकिस्तान चैंपियन बना, 2010 में वेस्टइंडीज़ में इंग्लैंड ने ख़िताब जीता, 2012 में श्रीलंका में वेस्टइंडीज़ की टीम चैंपियन बनी, वहीं 2014 में बांग्लादेश में आयोजित टूर्नामेंट को श्रीलंका ने जीता था.
संतुलित है टीम इंडिया: शिखर धवन, विराट कोहली जैसे बल्लेबाज़ों और रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जडेजा जैसे गेंदबाज़ों के घरेलू मैदान पर प्रदर्शन को देखते हुए टीम इंडिया दावेदारों में शामिल है. टीम काफ़ी संतुलित भी दिख रही है. इसके अलावा महेंद्र सिंह धोनी जैसे अनुभवी कप्तान की मौजूदगी से भी टीम को बढ़त हासिल है.
अनुभव की कमी नहीं : टीम के शीर्ष सात खिलाड़ी- एमएस धोनी, विराट कोहली, शिखर धवन, युवराज सिंह, सुरेश रैना, रोहित शर्मा और अजिंक्य रहाणे के पास एक हज़ार से ज़्यादा टी20 मैचों का अनुभव है.
यानी, इनके पास अनुभव की कोई कमी नहीं है. रोहित शर्मा और विराट कोहली तो बिना शक दुनिया के सबसे प्रतिभाशाली बल्लेबाज़ों में शामिल हैं. ये दोनों किसी भी स्थिति में किसी भी मैच का नक्शा कुछ ही ओवरों में बदलने का दमखम रखते हैं. इसलिए अगर हम भारत की दावेदारी मज़बूत देख रहे हैं तो इसकी वजह कोहली और रोहित हैं.
कैप्टन कूल का होना : महेंद्र सिंह धोनी को हाल के दिनों में काफी दबाव का सामना करना पड़ा है. कई लोग सुझाव दे रहे हैं कि टीम की कप्तानी अब कोहली को दे देनी चाहिए. ऐसे लोगों के मुताबिक़ धोनी में अब वैसी आक्रामकता नहीं रही, जो कभी उनकी ख़ासियत हुआ करती थी.
लेकिन दूसरी ओर धोनी लगातार ख़ुद को टी20 में साबित करते रहे हैं. उनका रिकॉर्ड वर्ल्ड कप और चैंपियंस कप जैसे टूर्नामेंटों में भी शानदार रहा है. धोनी की कप्तानी में टीम ने 2011 का वर्ल्ड कप ख़िताब जीता है, इसके चार साल बाद टीम सेमीफ़ाइनल में पहुंचने में कामयाब रही.
उनकी कप्तानी में टीम ने 2013 में चैंपियंस ट्रॉफ़ी का ख़िताब जीता और 2007 में वो टीम को वर्ल्ड टी20 का चैंपियन बना चुके हैं. धोनी कई सालों से इंडियन प्रीमियर लीग, घरेलू टी20 सिरीज़ में खेलते रहे हैं, जहां वे आक्रामक अंदाज़ में अपने शाट्स खेलते रहे हैं. टीम इंडिया में मौजूदा प्रतिभाओं को देखते हुए यह अचरज भरा हो सकता है कि अगर कप्तान के तौर पर धोनी इस टूर्नामेंट में कामयाब नहीं होते हैं.
उनके सामने सम्मान के साथ विदाई लेने का मौका भी होगा. धोनी शायद इस मामले में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान कप्तान माइकल क्लार्क से सबक ले सकते हैं जिन्होंने 2015 का वर्ल्ड कप जीतने के बाद शिखर पर रहते हुए संन्यास लिया था.
सुरेश रैना भी सीमित ओवरों के स्पेशलिस्ट खिलाड़ी हैं, जो खेल के शानदार फ़िनिशर भी हैं. आशीष नेहरा किसी पारी में गेंद को शुरुआती ओवरों में स्विंग करा सकते हैं और विकेट भी झटक सकते हैं. साफ़ है कि भारत का प्रदर्शन इन सीनियर खिलाड़ियों पर बहुत ज़्यादा निर्भर करेगा.
घरेलू दर्शकों का साथ: अंतिम आईसीसी वर्ल्ड कप के दौरान, मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में भारत और दक्षिण अफ़्रीका के बीच मुक़ाबला देखने के लिए 87 हज़ार लोग मौजूद थे. दो विदेशी टीमों का मुक़ाबला देखने के लिए इतनी भीड़, ये अविश्वसनीय जैसा था. लेकिन उनमें 85 हज़ार भारतीय थे.अब ये ज़ाहिर हो चुका है, भारत इन दिनों जहां भी खेलता है, उसके लिए मैदान में समर्थन की कमी नहीं होती. इसके बावजूद घरेलू मैदान पर स्थिति एकदम अलग होती है.
उदाहरण के लिए अगर कोलकाता के ईडन गार्डन में खेले जाने वाले फ़ाइनल में भारत पहुंचता है तो हर भारतीय चौके पर दर्शकों का शोर दूसरों को बहरा बना देगा, जबकि विपक्षी टीम के हर चौके पर पिन ड्रॉप सन्नाटा हो सकता है. इससे मनोवैज्ञानिक दबाव भी बढ़ता है. अगर आप फॉर्म में नहीं हैं तो दर्शकों का जोरदार समर्थन आपके मनोबल को बढ़ा सकता है. घरेलू दर्शक भी एक फ़ैक्टर होगा. लेकिन क्या यह भारत के फ़ायदे में काम करेगा? यह भारतीय खिलाड़ियों की प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा- क्या वे इसे दबाव के रूप में लेंगे या फिर समर्थन के रूप में? टीम इंडिया पर लंबे समय से मेरी नज़र रही है तो मैं कह सकता हूं कि भारतीय खिलाड़ी इसे समर्थन के तौर पर ही लेंगे, दबाव के तौर पर नहीं.
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