नई दिल्ली : देशद्रोह के आरोप में विश्वविद्यालय से निष्कासित जवाहरलाल विश्वविद्यालय के दो छात्रों ने मंगलवार को अपने निष्कासन को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। विश्वविद्यालय परिसर में 9 फरवरी को आयोजित एक विवादित कार्यक्रम के संबंध में दोनों छात्रों को देशद्रोह के आरोप में अलग अलग अवधियों के लिये विश्वविद्यालय से निष्कासित किया गया है।
उच्चस्तरीय जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर विश्वविद्यालय ने उमर खालिद को एक सेमेस्टर जबकि दूसरे छात्र अनिर्बान भट्टाचार्य को 15 जुलाई तक के लिए निष्कासित कर दिया था। उमर पर 20,000 रूपए का जुर्माना भी लगाया गया जबकि 23 जुलाई के बाद पांच वर्ष तक के लिए जेएनयू परिसर में अनिर्बान के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने उमर और अनिर्बान की याचिका पर जेएनयू को नोटिस जारी कर इस संबंध में जवाब मांगा और साथ ही उनके निर्देशानुसार विश्वविद्यालय के वकील द्वारा दिया गया वह बयान भी दर्ज किया जिसमें यह बताने को गया था कि उमर को जुर्माने की राशि जमा कराने के लिए अधिकतम कितना समय दिया जा सकता है। वकील ने 30 मई तक का वक्त तक का समय दिये जाने की बात कही। मामले की अगली सुनवायी 30 मई को ही होनी है।
न्यायाधीश ने जेएनयू के फैसले पर स्थगन सहित किसी प्रकार का अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया। छात्रों ने अपनी याचिका में मामले पर अंतरिम आदेश की मांग की थी। न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें सभी रिकार्ड देखने होंगे कि विश्वविद्यालय ने जांच कराने के लिए समुचित प्रक्रिया का पालन किया है या नहीं।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, ‘यह सुनिश्चित करने के लिए सभी रिकार्ड देखने हैं कि निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन हुआ है या नहीं। आप सभी तथ्यों से अनभिज्ञता जता रहे हैं, ऐसे में मुझे रिकार्ड देखना होगा।’ उन्होंने अगली तारीख पर विश्वविद्यालय को सभी रिकार्ड लाने के निर्देश दिए।
उमर की ओर से पेश हुए वकील अखिल सिब्बल ने दलील दिया कि उनका मुवक्किल 11 से 21 फरवरी तक भूमिगत था क्योंकि नौ फरवरी के कार्यक्रम के बाद उसे अपनी जान पर खतरा महसूस हो रहा था। फिर आत्मसमर्पण करने के बाद वह 23 फरवरी से 18 मार्च तक जेल में था। सिब्बल ने कहा कि उच्चस्तरीय जांच समिति ने इसी अवधि में, उनके मुवक्किल की गैरमौजूदगी में जांच की और जब वह जेल में था तब विश्वविद्यालय ने 15 मार्च को उसे एक कारण बताओ नोटिस जारी करने का प्रयास किया।
जेएनयू के वकील ने अदालत को बताया कि उमर के पिता के आवास सहित उसके ज्ञात ठिकानों पर तीन बार नोटिस भेजा गया, लेकिन वह समिति के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। अनिर्बान के वकील ने भी अदालत से अंतरिम राहत की मांग करते हुए कहा कि छात्र को तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया गया और उन्हें अपना शोधपत्र जमा करने के लिए महज एक सप्ताह का समय मिला और वह अपने प्रोफेसर से 15 जुलाई तक संपर्क नहीं कर सकेंगे। इसपर जेएनयू की वकील ने कहा कि निष्कासन आदेश 25 अप्रैल को आया और छात्र को पहले ही अदालत में आना चाहिए था।
COMMENTS