वाशिंगटन। भारत के 7.5 फीसदी विकास दर के दावे पर संदेह जताते हुए अमेरिका ने कहा है कि भारत सरकार को सुधारों को जोर-शोर से लागू करना चाहिए। अमेरिका के ब्यूरो ऑफ इकॉनॉमिक एंड बिजनेस अफेयर्स ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि देखने में, भारत दुनिया का सबसे तेजी से विकास करने वाला देश प्रतीत होता है, लेकिन निवेशकों की उदासी से लगता है कि 7.5 फीसदी विकास दर का अनुमान बढ़ा-चढ़ा कर लगाया गया है।
इस व्यापक रपट में नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा 2014 के बाद से उठाए गए कदमों की भी समीक्षा की गई है। खासतौर से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), 'मेक इन इंडिया' अभियान और लालफीताशाही के खात्मे को लेकर उठाए गए कदमों की चर्चा की गई है। इंवेस्टमेंट क्लाइमेट स्टेटमेंट्स फॉर 2018 रपट के भारत खंड में कहा गया है। हालांकि सरकार कई दूसरे सुधार पर धीमी गति से काम कर रही है तथा कई प्रस्तावित सुधार संसद में अटक गए हैं।
भारत की राजनीतिक प्रणाली अत्यधिक विकेंद्रीकृत है। निवेशकों को कई राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। खासतौर से प्रशासन, नियमन, कराधान, श्रम सुधार और शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर में काफी अंतर है। इस रपट में कहा गया है कि इस स्थिति से निवेशक अब निवेश से पीछे हटने लगे हैं, जबकि एक समय में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार को समर्थन दिया था।
अमेरिका के विदेश विभाग की रपट में भारत के बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) व्यवस्था के बारे में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से 'मेक इन इंडिया' में निवेश की गुजारिश करते आ रहे हैं, लेकिन भारत में आईपीआर व्यवस्था सही नहीं होने के कारण निवेशक वहां निवेश नहीं कर रहे। इसमें कहा गया है कि मोदी सरकार ने आईपीआर को लेकर अमेरिकी सरकार और अमेरिकी उद्योग जगत के साथ विचार-विमर्श किया है।
पिछले महीने विश्व बैंक ने वर्तमान वित्त वर्ष में भारत की विकास दर के अनुमान 7.6 फीसदी को बरकरार रखा था। भारत का साल 2015-16 में विकास दर 7.6 फीसदी दर्ज किया गया। अब अमेरिकी विदेश विभाग ने इस आंकड़े पर संदेह जताया है। इसके बाद देश में एक बार फिर विकास दर की गणना पर विवाद खड़ा हो सकता है, जिसे केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने पिछले साल लागू किया था।
इस रपट में इस तथ्य को भी रखा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन ने सितंबर में अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद अकादमिक जगत में लौटने और दूसरा कार्यकाल न लेने की घोषणा की है, जिससे निवेशकों का उत्साह घट सकता है।
इस व्यापक रपट में नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा 2014 के बाद से उठाए गए कदमों की भी समीक्षा की गई है। खासतौर से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), 'मेक इन इंडिया' अभियान और लालफीताशाही के खात्मे को लेकर उठाए गए कदमों की चर्चा की गई है। इंवेस्टमेंट क्लाइमेट स्टेटमेंट्स फॉर 2018 रपट के भारत खंड में कहा गया है। हालांकि सरकार कई दूसरे सुधार पर धीमी गति से काम कर रही है तथा कई प्रस्तावित सुधार संसद में अटक गए हैं।
भारत की राजनीतिक प्रणाली अत्यधिक विकेंद्रीकृत है। निवेशकों को कई राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। खासतौर से प्रशासन, नियमन, कराधान, श्रम सुधार और शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर में काफी अंतर है। इस रपट में कहा गया है कि इस स्थिति से निवेशक अब निवेश से पीछे हटने लगे हैं, जबकि एक समय में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार को समर्थन दिया था।
अमेरिका के विदेश विभाग की रपट में भारत के बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) व्यवस्था के बारे में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से 'मेक इन इंडिया' में निवेश की गुजारिश करते आ रहे हैं, लेकिन भारत में आईपीआर व्यवस्था सही नहीं होने के कारण निवेशक वहां निवेश नहीं कर रहे। इसमें कहा गया है कि मोदी सरकार ने आईपीआर को लेकर अमेरिकी सरकार और अमेरिकी उद्योग जगत के साथ विचार-विमर्श किया है।
पिछले महीने विश्व बैंक ने वर्तमान वित्त वर्ष में भारत की विकास दर के अनुमान 7.6 फीसदी को बरकरार रखा था। भारत का साल 2015-16 में विकास दर 7.6 फीसदी दर्ज किया गया। अब अमेरिकी विदेश विभाग ने इस आंकड़े पर संदेह जताया है। इसके बाद देश में एक बार फिर विकास दर की गणना पर विवाद खड़ा हो सकता है, जिसे केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने पिछले साल लागू किया था।
इस रपट में इस तथ्य को भी रखा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन ने सितंबर में अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद अकादमिक जगत में लौटने और दूसरा कार्यकाल न लेने की घोषणा की है, जिससे निवेशकों का उत्साह घट सकता है।
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