नई दिल्ली: कश्मीर को सुलगे 100 घंटे से ज्यादा वक्त बीत चुका है लेकिन हिंसा अब तक नहीं थमी है. शुक्रवार को हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद देखते ही देखते हिंसा ने घाटी को चपेट में ले लिया. अब तक 32 जानें जा चुकी हैं और सोलह सौ से ज्यादा लोग जख्मी हैं.. पुलिस कह रही है कि हिंसा अचानक भड़की और उन इलाकों में भड़की जहां हिंसा की उम्मीद नहीं थी.
आज भी पुलवामा में दो जगह पुलिस चेक पोस्ट पर हमला हुआ और हथियार छीने गए. कुपवाड़ा में फायरिंग में एक शख्स की मारा गय जबकि पुलगाम, शोपियां और गांदरबाल में हिंसा की खबरें आईं. हालात इतने बिगड़ गए हैं कि चार दिनों बाद भी कश्मीर के दस जिलों में से आठ जिले बुरी तरह प्रभावित हैं और ज्यादातर हिस्सों में अब भी कर्फ्यू लगा है.. पुलिस कह रही है कि हिंसा उन इलाकों में भड़की जहां उम्मीद ही नहीं थी
दक्षिण कश्मीर के चार जिलों अनंतनाग, कुलगाम, शोपियां और पुलवामा जिले में पूरी तरह कर्फ्यू लगा है. इसके अलावा बारामुला, सोपोर और कुपवाडा के कुछ इलाकों में कर्फ्यू है। श्रीनगर के 27 थानों में से 8 थानों के इलाकों में कर्फ्यू है. श्रीनगर शहर के उत्तरी और दक्षिणी इलाके खानियार, नौहट्टा, रैनावरी, क्रालकुर्द, सफाकदल, मैसिमा, नूरबाग, हब्बाकदल, महाराजगंज थानाक्षेत्रों में कर्फ्यू है.
10 में बाकी बचे 2 जिलों गांदरबल और बांदीपुर में फिलहाल शांति है. इस समय जम्मू कश्मीर पुलिस के 70 हजार जवान और सीआरपीएफ के 30 हजार जवान तैनात हैं. इसके अलावा सेना के जवान भी कई जगह मुस्तैदी से लगे हैं. इसके बावजूद भी बड़ी तादाद में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर रहे हैं और हर दिन हिंसा की घटना हो रही है. अब सरकार अपने मंत्रियों को लोगों तक जाने को कह रही है
ऐसे हालत में जब राज्य सरकार के मंत्रियों को सड़क के रास्ते चलने का भरोसा नहीं है तो जनता में सुरक्षा का भरोसा कैसे आएगा इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है. हर साल 13 जुलाई को कश्मीर में शहीदी दिवस मनाया जाता है. कल 13 जुलाई है. इसको लेकर सुरक्षाबलों को और सतर्क रहने की हिदायत दी गई है. अलगाववादी श्रीनगर के पास नौहट्टा में शहीदों की मजार तक जुलूस ले जाने का एलान कर चुके हैं. ”
1931 में महाराजा हरि सिंह के खिलाफ लोगों ने प्रदर्शन किया जिस पर महाराजा की फौज ने फायरिंग की और 22 लोगों की जान चली गई. उसको कश्मीर के स्वतंत्रता संग्राम के लिए पहला नरसंहार कहा गया है और इसीलिए इसको शहीदी दिवस के तौर पर मनाते हैं. हर साल शहीदी दिवस के दिन हिंसा की आशंका होती है क्योंकि अलगाववादियों को मजार पर जाने नहीं दिया. इस साल माहौल पहले से खराब है इसलिए सरकार ज्यादा सतर्क है.
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