नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की चुनावी नैया पार करने के लिए भाजपा दलित और गोरक्षा को मुद्दा बनाएगी। इसके सहारे आगे बढ़ने पर उससे दलित भी सधेंगे और उसका परंपरागत वोट भी। इस मामले में भाजपा के दिग्गज नेता और उसके दूसरे सहयोगी संगठन अभी काम कर रहे हैं। भाजपा यह अच्छी तरह से जानती है कि बिना अच्छे मुद्दों के यूपी की वैतरणी पार करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। राममंदिर के बाद से मुद्दों और बिना मुद्दों के यूपी में सीटों का गणित भाजपा को अच्छी तरह से समझ आ गया है। यही वजह है कि भाजपा दलित और गोरक्षा के मुद्दों पर मजबूती से काम कर रही है।
मुद्दा था तो यूपी के चुनावों में भाजपा को दिल खोलकर वोट मिले थे। राममंदिर मुद्दे के बाद भाजपा 1989 में मिली 57 सीट के बाद एकदम से 221 सीटों की संख्या पर पहुंच गई थी। इसके बाद भाजपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1993 में 177 और 1996 में 174 जैसी सम्मानजनक संख्या मिली थी। लेकिन ढाई दशक बीतने के साथ ही राममंदिर मुद्दा फीका पड़ गया। उसके बाद यूपी में भाजपा की हालत क्या हुई यह बताने के लिए यूपी के तीन विधानसभा चुनावों के नतीजे ही काफी हैं। 2002 के चुनाव में भाजपा को 88, 2007 में 51 और 2012 के चुनाव में 47 सीट पर ही सब्र करना पड़ा।
राममंदिर मुद्दे के बाद लाख कोशिश के बाद भी कोई ठोस मुद्दा भाजपा के हाथ नहीं लगा। बेशक भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में चौंकाने वाला प्रदर्शन किया हो, लेकिन यूपी में उसके हाथ-पांव फूले हुए हैं। यूपी-बिहार को ध्यान में रखते हुए ही भाजपा ने लव जिहाद, गौरक्षा, घर वापसी, वंदे मातरम, योग आदि मुद्दों को जोर शोर के साथ उछाला था, लेकिन गोरक्षा को छोड़कर बाकी के सभी मुद्दों पर मुंह की खानी पड़ी। बिहार में मुद्दों का क्या हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। किसी को भी भाजपा राष्ट्र और राज्य स्तर पर मुद्दा नहीं बना पाई।
यह बात सच है कि पहली टिप्पणी भाजपा के दयाशंकर की ओर से आई थी। लेकिन बसपा उसे उतना बड़ा मुद्दा नहीं बना पाई जितना कि भाजपा ने गाली का जबाव गाली से बना लिया। मुद्दा भी ऐसा बना कि अभद्र टिप्पणी झेलने के बाद भी भाजपा के विरोध के सामने बसपा को चुप्पी साधनी पड़ी। बस इसी का फायदा भाजपा ने उठाना शुरु कर दिया। यह बात अलग है कि गुजरात में दलितों की पिटाई के मामले में भाजपा पर निशाना साधा जाने लगा। लेकिन उसे भी प्रधानमंत्री मोदी ने एक बयान जारी कर कमजोर करने की कोशिश तो कर ही दी।
अचानक बढ़ गया दलित प्रेम
इस सब के बाद से भाजपा शांत नहीं बैठी है। सबसे पहले इस काम में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को लगाया गया। वो फटाफट यूपी में एक दलित के घर भोजन कर आए। इसके बाद भाजपा का थिंक टैंक कहे जाने वाले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी बुधवार को आगरा में दलित के घर भोजन करने पहुंच गए। यहां यह बात भी ध्यान रखने वाली है कि भाजपा ने अभी गोरक्षा का मुद्दा अभी छोड़ा नहीं है। इस बात का इशारा मोहन भागवत भी अपने कार्यक्रमों में दे गए हैं। कार्यकर्ताओं को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि गो सेवा का कार्य जारी रखें। साथ ही मोदी के बयानों के बाद गोरक्षक संगठनों को दिलासा भी दिया।
मुद्दा था तो यूपी के चुनावों में भाजपा को दिल खोलकर वोट मिले थे। राममंदिर मुद्दे के बाद भाजपा 1989 में मिली 57 सीट के बाद एकदम से 221 सीटों की संख्या पर पहुंच गई थी। इसके बाद भाजपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1993 में 177 और 1996 में 174 जैसी सम्मानजनक संख्या मिली थी। लेकिन ढाई दशक बीतने के साथ ही राममंदिर मुद्दा फीका पड़ गया। उसके बाद यूपी में भाजपा की हालत क्या हुई यह बताने के लिए यूपी के तीन विधानसभा चुनावों के नतीजे ही काफी हैं। 2002 के चुनाव में भाजपा को 88, 2007 में 51 और 2012 के चुनाव में 47 सीट पर ही सब्र करना पड़ा।
राममंदिर मुद्दे के बाद लाख कोशिश के बाद भी कोई ठोस मुद्दा भाजपा के हाथ नहीं लगा। बेशक भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में चौंकाने वाला प्रदर्शन किया हो, लेकिन यूपी में उसके हाथ-पांव फूले हुए हैं। यूपी-बिहार को ध्यान में रखते हुए ही भाजपा ने लव जिहाद, गौरक्षा, घर वापसी, वंदे मातरम, योग आदि मुद्दों को जोर शोर के साथ उछाला था, लेकिन गोरक्षा को छोड़कर बाकी के सभी मुद्दों पर मुंह की खानी पड़ी। बिहार में मुद्दों का क्या हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। किसी को भी भाजपा राष्ट्र और राज्य स्तर पर मुद्दा नहीं बना पाई।
यह बात सच है कि पहली टिप्पणी भाजपा के दयाशंकर की ओर से आई थी। लेकिन बसपा उसे उतना बड़ा मुद्दा नहीं बना पाई जितना कि भाजपा ने गाली का जबाव गाली से बना लिया। मुद्दा भी ऐसा बना कि अभद्र टिप्पणी झेलने के बाद भी भाजपा के विरोध के सामने बसपा को चुप्पी साधनी पड़ी। बस इसी का फायदा भाजपा ने उठाना शुरु कर दिया। यह बात अलग है कि गुजरात में दलितों की पिटाई के मामले में भाजपा पर निशाना साधा जाने लगा। लेकिन उसे भी प्रधानमंत्री मोदी ने एक बयान जारी कर कमजोर करने की कोशिश तो कर ही दी।
अचानक बढ़ गया दलित प्रेम
इस सब के बाद से भाजपा शांत नहीं बैठी है। सबसे पहले इस काम में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को लगाया गया। वो फटाफट यूपी में एक दलित के घर भोजन कर आए। इसके बाद भाजपा का थिंक टैंक कहे जाने वाले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी बुधवार को आगरा में दलित के घर भोजन करने पहुंच गए। यहां यह बात भी ध्यान रखने वाली है कि भाजपा ने अभी गोरक्षा का मुद्दा अभी छोड़ा नहीं है। इस बात का इशारा मोहन भागवत भी अपने कार्यक्रमों में दे गए हैं। कार्यकर्ताओं को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि गो सेवा का कार्य जारी रखें। साथ ही मोदी के बयानों के बाद गोरक्षक संगठनों को दिलासा भी दिया।
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