मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दो मंत्रियों को बर्खास्त किये जाने के अगले ही दिन मंगलवार को मुख्य सचिव दीपक सिंघल को भी हटा दिया। 1982 बैच के आइएएस सिंघल को मुख्य सचिव के साथ ही प्रमुख स्थानिक आयुक्त नई दिल्ली और अध्यक्ष पिकप, उत्तर प्रदेश के पद से भी हटाकर प्रतीक्षारत कर दिया गया है। सिंघल की जगह 1983 बैच के आइएएस राहुल भटनागर को मुख्य सचिव का दायित्व सौंपा गया है। भटनागर के पास पिकप और प्रमुख सचिव स्थानिक आयुक्त का भी दायित्व रहेगा।
मुलायम से पूछे बगैर अखिलेश ने की मंत्रियों की छुट्टी!
अभी तक वित्त आयुक्त एवं प्रमुख सचिव वित्त संस्थागत, वित्त एवं चीनी उद्योग तथा गन्ना विकास के पद पर रहे राहुल भटनागर प्रदेश के 49 वें मुख्य सचिव होंगे। भटनागर ने मंगलवार दोपहर कार्यभार भी ग्रहण कर लिया। साफ सुथरी छवि के भटनागर त्वरित गति से कार्य निपटाने के लिए जाने जाते हैं। भटनागर ने 1982 बैच के कई अधिकारियों को सुपरसीड कर यह पद हासिल किया है। प्रदेश में ही 1982 बैच के प्रवीर कुमार, प्रदीप भटनागर, चंद्रप्रकाश प्रथम और नवतेज सिंह की तैनाती है। दीपक सिंघल इसी वर्ष सात जुलाई को मुख्य सचिव बनाये गये थे और महज सवा दो माह में ही उनकी छुट्टी कर दी गयी।
जनता के बीच भरोसा कायम करेंगे : भटनागर
कार्यभार ग्रहण करने के बाद मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने कहा कि वह जनता के बीच भरोसा कायम करेंगे। जनता की सेवा सबसे बड़ी चुनौती है और उन्होंने यह स्वीकार की है। कई अफसरों को सुपरसीड किये जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह तो सरकार का फैसला है। कानून-व्यवस्था के मसले पर उन्होंने कहा कि पुलिस और प्रशासन मिलकर बेहतर रिजल्ट देंगे। अफसरों की खराब कार्यशैली पर कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि जहां जरूरत होगी वहां एक्शन लिया जाएगा। भटनागर ने कहा कि उत्तर प्रदेश में फैसले तेज गति से लिए जाते हैं और विकास से संबंधित मामलों में कहीं भी फाइल लंबित नहीं रहने दी जाएगी।
कभी अखिलेश की पसंद नहीं रहे सिंघल
सिंघल को हटाये जाने के बाद से ही यह सवाल उठने लगा है कि आखिर इतनी जल्दी मुख्यमंत्री को ऐसा फैसला क्यों लेना पड़ा। दरअसल, सिंघल कभी मुख्यमंत्री अखिलेश की पसंद नहीं रहे। इसके पहले सपा सरकार में दो और मुख्य सचिव कार्य कर चुके हैं। सपा सरकार में पहले मुख्य सचिव बनाये गये जावेद उस्मानी को कार्यकाल के बीच ही मई 2014 में हटाया गया लेकिन उन्हें मुख्य सूचना आयुक्त बनाकर उनका मान बढ़ाया गया। इसके बाद मुख्य सचिव बनाये गये आलोक रंजन ने न केवल कार्यकाल पूरा किया बल्कि उन्हें तीन माह का सेवा विस्तार भी मिला। बाद में वह मुख्यमंत्री के सलाहकार बनाये गये। मुख्य सचिव की दौड़ में प्रवीर कुमार का नाम सबसे आगे था लेकिन, दीपक सिंघल को पारिवारिक और सियासी दांव-पेंच के चलते मुख्य सचिव बनाया गया। इसे मुख्यमंत्री के चाचा शिवपाल सिंह यादव की नाराजगी दूर करने के तौर पर भी देखा गया।
हालांकि सिंघल के मुख्य सचिव बनाये जाने के साथ ही यह बात उठने लगी कि वह बहुत दिनों तक मुख्य सचिव नहीं रहेंगे। समय-समय पर समारोह के दौरान और सार्वजनिक दौरों में भी उन्होंने जिस तरह बेलौस बयान दिए वह सत्ता प्रतिष्ठान को अनुकूल नहीं लगा। सिंघल ने एक दौरे में काम में ढिलाई पर अफसरों को जेल भेजने का फरमान सुनाकर सनसनी फैला दी थी। सपा परिवार में प्रभावी दखल रखने वाले दो मंत्रियों की बर्खास्तगी के बाद मुख्य सचिव को हटाकर अखिलेश यादव यह संदेश देने में कामयाब हो गये हैं कि अब उनकी ही मर्जी चलेगी। ऐसे ही एक बार सिंघल को प्रमुख सचिव गृह बनाया गया और वह मात्र दो सप्ताह में इस पद से भी विदा कर दिए गये थे। मुख्यमंत्री कई बार सार्वजनिक मंचों पर भी सिंघल की खिंचाई कर चुके हैं क्योंकि सिंघल कुछ न कुछ ऐसा जरूर बोल जाते थे जो समय के अनुकूल नहीं होता था।
कहीं दिल्ली की पार्टी तो नहीं बनी वजह
दीपक सिंघल को हटाए जाने की वजहें तो कई हैं लेकिन यह भी कयास लग रहा है कि हाल में दिल्ली में हुई एक पार्टी में उनके शामिल होने को लेकर भी तल्खी ज्यादा बढ़ गयी थी। इस पार्टी में शतरंज की बिसात पर कई मोहरे बिछाये गये और इसमें सिंघल कुछ लोगों के हथियार के तौर पर प्रयुक्त हुए। मुख्य सचिव बनने के बाद सिंघल ने मुख्यमंत्री के करीब आने की कोशिश तो बहुत की लेकिन मुख्यमंत्री की जिनसे दूरियां बढ़ी हैं सिंघल उन लोगों के भी काफी करीब हो गये थे। सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने सपा सांसद अमर सिंह के साथ पूर्व में सिंघल की बातचीत के तीन टेप जारी कर माहौल को पहले ही गर्मा दिया था।
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