नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी की भाषा में पुराने नोट कागज के टुकड़े हो चुके हैं। इसलिए अब इन्हें बदलने के लिए जनता परेशान है। पहले कहा गया था कि सिर्फ आईडी लगेगी और पैसा बदल जाएगा, लेकिन अब लोगों को बैंक पहुंचने पर एक फॉर्म भी भरना पड़ रहा है। इसे लेकर लोगों में गुस्सा है। उधर, बैंक एंप्लायज फेडरेशन ने इस फैसले से पहले बैंकों का इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक न करवाने पर सवाल उठाए हैं।
टैक्स चोरी करके घरों में पैसे रखने वाले तो काट निकालने में जुटे हुए हैं लेकिन उससे ज्यादा समस्या आम आदमी को झेलनी पड़ रही है। जनता को अपने ही कमाए पैसे के लिए पापड़ बेलने को मजबूर होना पड़ रहा है। लोग काम-धाम छोड़कर बैंकों के आगे खड़े हैं।
पैसा बदलने के लिए जो फॉर्म भरवाया जा रहा है वह अंग्रेजी में है। इससे ग्रामीण क्षेत्र के लोग परेशान हैं। एक पेज के इस आसान फॉर्म में सात तरह की जानकारी देनी पड़ रही है। जिसमें सबसे पहले ब्रांच और पैसा बदलवाने वाले का नाम लिखना है। इसके बाद पहचान पत्र की जानकारी देनी है, साथ ही उसकी फोटो कॉपी लगानी है।
पहचान पत्र के रूप में आपको आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईकार्ड, पासपोर्ट, नरेगा कार्ड, पैन कार्ड, सरकार द्वारा जारी कार्ड व पब्लिक सेक्टर यूनिट द्वारा जारी आई कार्ड में से कोई एक देना होगा। इसके बाद एक कॉलम में आईडी प्रूफ का नंबर देना पड़ेगा। अगले कॉलम में 500 और 1000 के पुराने नोटों का विवरण लिखना होगा। फिर हस्ताक्षर (आई कार्ड से मेल खाता हुआ) करना है। अंतिम कॉलम में स्थान और तारीख लिखनी होगी।
जसोला स्थित सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की शाखा पर पैसा बदलने आए नाज का कहना है कि उन्हें तो पहले फॉर्म के बारे में बताया ही नहीं गया था। उन्हें तो सिर्फ आईडी के बारे में पता था। दिल्ली स्थित गोल डाकखाने के बाहर लगी भीड़ में इस फॉर्म को लेकर विरोध के स्वर उभरे, लेकिन जब व्यवस्था यही है तो उन्हें मजबूरन उसे भरना पड़ा।
बैंक अधिकारियों का कहना है कि ब्लैकमनी खत्म करनी है तो पैसा बदलने वालों की जानकारी तो लेनी ही होगी। हरियाणा बैंक एंप्लायज फैडरेशन के चेयरमैन भोले सिंह प्रधान का कहना है कि रिजर्व बैंक की गाइडलाइन है इसलिए कर्मचारी इस फॉर्म को भरवा रहे हैं। वैसे सरकार को यह फैसला लागू करने से पहले बैंकों में संसाधन बढ़ाना चाहिए था। बैंकों का इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं है इसलिए कर्मचारी और जनता दोनों परेशान हैं।
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