साल 2016 के अंत में मोदी सरकार की ओर से की गई नोटबंदी ने इस साल 2017-18 के बजट को बेहद खास बना दिया है. इस बजट पर पूरे देश की निगाहें हैं. खास बात यह है कि पहली बार यूनिवर्सल बेसिक इनकम की चर्चा भी सुनाई दे रही है. बुधवार को संसद में बजट पूर्व 2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इसका जिक्र किया.
राष्ट्रपति ने कहा कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम गरीबों के लिए चलाई जाने वाली कई योजनाओं की जगह ले सकती है. आर्थिक सर्वे में राष्ट्रपति की ओर से यूनिवर्सल बेसिक इनकम का जिक्र करने के बाद, वित्त मंत्री अरुण जेटली गरीबों के लिए चलाई जाने वाली कई सुरक्षा योजनाओं को इसमें समाहित करें इसकी संभावना जताई जा रही है.
आइए जानते हैं क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम की यह योजना? भारत के लिए कितनी जरूरी है यह? और यदि मोदी सरकार इसे लागू करती है, तो देश के खजाने पर इसका कितना बोझ पड़ेगा?
क्या है बेसिक इनकम?
बेसिक इनकम के रूप में सरकार बिना किसी काम के हर व्यक्ति को एक निश्चित नकद राशि देती है. ऐसा पैसा विशेष रूप से गरीबों और बेरोजगारों के खाते में मासिक अथवा वार्षिक रूप से सीधे जमा किया जाता है. सरकार इस पैसे के बदले में ना तो कोई काम करवाती है और ना किसी तरह की सेवा लेती है. इस तरह की आय चूंकि प्रत्येक व्यक्ति को पाने का अधिकार होता है, इसलिए इसे वैश्विक आय भी कहा जाता है. मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम कहते हैं कि सरकार देश में हर व्यक्ति के खाते में सालाना 10000 से 15000 रुपये की राशि जमा करने की योजना बना रही है.
वस्तु या लाभ की बजाय, नकद मिलता है पैसा
बेसिक इनकम लाभ या वस्तु की बजाय नकद वितरित की जाती है. यह निशुल्क शिक्षा, भोजन, अथवा मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं की राशि के बदले दिया जाने वाला पैसा होता है.
भारत में क्या होगा भविष्य?
यदि भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लागू किया जाता है, तो इसे गरीबों के लिए चलाई जाने वाली कई सारी योजनाओं के विकल्प के रूप में लाया जा सकता है. इसके अंतर्गत इंदिरा आवास योजना, मनरेगा, पीडीएस जैसी योजनाओं का पैसा सीधे गरीबों के खाते में जमा किया जाएगा.
इसलिए लाना चाहती है सरकार इसे
यूनिवर्सल बेसिक इनकम लाने के पीछे सरकार की मंशा रोजगार सृजन के तरीकों को बदलना है, क्योंकि देश में आने वाले 20 सालों में मौजूदा कई क्षेत्रों में 68 फीसदी नौकरियां खतरे में होंगी. सरकार इसके जरिये आय का एक निश्चित जरिया पैदा करना चाहती है .
यूनिवर्सल बेसिक इनकम से खजाने पर बोझ
हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम सरकार के खजाने पर कितना बोझ बढ़ेगा. अनुमान लगाएं तो यह कुल जीडीपी का तकरीबन 10% हो सकता है. माना जा रहा है कि सरकार इसे तेंदुलकर कमेटी की ओर से निर्धारित गरीबी रेखा में आने वाले लोगों को दे सकती है, या फिर जनधन खातों से भी इसे जोड़ा जा सकता है. नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनघड़िया का अनुमान है कि यदि 130 करोड़ भारतीयों को 1000 रुपये भी दिए जाएं तो इसकी कुल लागत 15 लाख करोड़ से ज्यादा होती है.
भारत में यहां लागू हुई पहली बार
यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम, भारत में 2011 में मध्य प्रदेश के 8 गांवों में पहली बार लागू की गई. जहां सरकार ने महिलाओं, पुरुषों और बच्चों सभी को ही नकद पैसे दिए. प्रारंभिक तौर पर प्रत्येक युवक को 200 रुपये, तो वहीं बच्चों को 100 रुपये की राशि का भुगतान किया गया. बाद में सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर 300 और 150 रुपये कर दिया गया. इसमें दो प्रोजेक्ट का पैसा यूनिसेफ की ओर से दिया गया.
मप्र में ऐसा रहा परिणाम
यूनिसेफ के इस प्रोजेक्ट से जुड़े और ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज के डॉ. गाय के मुताबिक मध्य प्रदेश में यह प्रयोग सफल माना जा सकता है. इससे न केवल लोगों को आसानी से खाना मिला बल्कि उनके स्वास्थ्य और पोषण भी सुधरा, जबकि बच्चों ने स्कूल जाने में भी रुचि दिखाई. वे कहते हैं- बेसिक इनकम की वजह से न केवल छोटी बचत योजनाओं में बढ़ोतरी दर्ज की गई, बल्कि लोग कर्ज मुक्त भी हुए.
तो क्या भारत के लिए सही होगी ये योजना?
देश में इस स्कीम को लेकर एक आम सहमति दिखाई नहीं देती. जानकारों का मानना है कि केवल बेकारी के बदले और किसी भी तरह का काम-धंधा नहीं करने वालों को सरकार के इस तरह से पैसे बांटने से जनता के एक वर्ग में नाराजगी फैल सकती है, जबकि निशुल्क स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन व अन्य सुविधाओं की योजनाओं को बंद करने के परिणाम भी अच्छे नहीं होंगे.
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