पहले गरीबी और बेकारी ने परदेस जाकर रोजी रोटी कमाने को मजबूर किया और अब कोरोना ने एक बार फिर कदम गांव घर की ओर मोड़ने को विवश कर दिया है। नई दिल्ली और पश्चिमी यूपी ही नहीं बल्कि सूबे की राजधानी लखनऊ से भी बड़े पैमाने पर इन दिहाड़ी मजदूरों का पलायन हो रहा है।
सोमवार को लखनऊ के शहीद पथ पर कोरोना संकट से उपजे इस पलायन ने मुल्क के बंटवारे के बाद बड़े पैमाने पर हुए पलायन जैसे ही दृश्य नजर आए।
राम औतार का परिवार यहीं लखनऊ के तेलीबाग इलाके में झोपड़ी डालकर रह रहा था। छोटे भाई और पत्नी के साथ राजगीर मिस्त्री का काम करने वाले रामऔतार बातचीत करते ही बिलख पड़े। सीतापुर जाना है, उन्हें सबसे ज्यादा कष्ट अपने नन्हें-नन्हें बच्चों को पैदल चलते-चलते थक जाने पर उन मासूमों के चेहरों पर उभरे उस दर्द से हो रहा है जो बगैर बोले ही कह रहा है कि पापा अब नहीं चला जाता...।
पैदल ही चल दिए हैं सीवान
मदन अपनी टोली के साथ कंधे पर बैग, बोरी लादे अमौसी पर बस से उतरे हैं। सरकारी बस से वह दिल्ली के आनंद बिहार टर्मिनल से आए हैं और अब शहीद पर पैदल चलते हुए फैजाबाद रोड स्थित पालीटेक्निक चौराहे पर जाएंगे। जहां से उन्हें बिहार सीवान जाने वाली किसी सवारी की तलाश है। हाथों में पानी की बोतलें और खाने के पैकेट हैं।
लखनऊ पुलिस ने दिए खाने के पैकेट
पूछने पर मजदूर कहते हैं यह खाने के पैकेज उन्हें लखनऊ में पुलिस वालों ने दिए हैं। ज्ञान सिंह चौहान, मुन्ना चौहान, सूरज चौहान और राजकुमार गौड़ दिल्ली में पत्थर तोड़ने का काम करते हैं। आज सुबह ही उन्हें दिल्ली से आई सरकारी बस ने लखनऊ उतारा है और फिर अपनी टोली के साथ पैदल ही शहीद पथ पर चल दिए। कंधे पर बड़े-बड़े हथौड़े उनके फौलाद तोड़ने के हौसले की निशानी हैं। जौनपुर अपने गांव जाएंगे, सुल्तानपुर जाने वाली बस की तलाश है।
बरेली पुलिस ने पैसे छीन लिए
बोले-बरेली में पुलिस ने काफी परेशान किया, पैसे भी छीन लिए। यहां लखनऊ में तो पुलिस काफी मदद कर रही है। खाना-पानी सब दे रही है। शहीद पथ के बीच डिवाइडर पर पेड़ के नीचे हरी घास पर सुस्ताने बैठे रोहित इस कदर मायूस और तनाव में थे कि पहले पहल तो लगा कि कोई विक्षिप्त युवक बैठा है। मगर बार-बार कुरेदने पर बोल ही पड़े-कल दिल्ली से निकले थे बस से, बस्ती जाना है देखो कैसे पहुंचते हैं, कुछ समझ नहीं आ रहा।
पता नहीं गांव में घुसने भी देंगे या नहीं
हुसैड़िया चौराहे से शहीद पथ पर चढ़े प्रदीप, कुलदीप, राजू पालीटेक्निक चौराहे पर बस से उतरे और फिर पैदल ही कानपुर के लिए चल पड़े। हाथों में खीरा और पानी की बोतलें हैं। पूछने पर बताया कि यह रास्ते में लोगों ने दिया है। हरियाणा में जूता बनाने वाले कारखाने में काम करते हैं। मन में एक सवाल बार-बार परेशान कर रहा है-वहां से चल तो दिए, पता नहीं गांव में घुसने दिया भी जाएगा या नहीं।
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