बांदा(संवाददाता)। रात को पुलिस किसी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती। साथ ही दिन में भी गिरफ्तारी के समय महिला पुलिस का होना बहुत जरूरी है। इसी तरह किशोरों की गिरफ्तारी के बारे में भी नियम और शर्तें हैं। ये जानकारियां सोमवार को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आयोजित पैनल अधिवक्ताओं के प्रशिक्षण में दी गईं। न्यायालय परिसर स्थित एडीआर सेंटर में आयोजित प्रशिक्षण में प्री-अरेस्ट (गिरफ्तारी से पूर्व) और अरेस्ट (गिरफ्तार होने पर) दी जाने वाली विधिक सेवाओं की जानकारी दी गई। 40 से अधिक पैनल अधिवक्ता शामिल हुए।
अपर जिला जज तृतीय कृष्ण यादव ने प्री-अरेस्ट और अरेस्ट के दौरान विधिक सेवाएं देने की जानकारियां अधिवक्ताओं को दीं। साथ ही इन दोनों अवस्थाओं में पुलिस की भूमिका के बारे में बताया। अधिवक्ताओं की जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। अपर जिला जज चतुर्थ रामकरन ने यह जानकारियां दीं कि किन परिस्थितियों में और किसे गिरफ्तार किया जा सकता है। अपर जिला जज पंचम मोहम्मद रिजवान अहमद ने बताया कि रात में किसी महिला की गिरफ्तारी नहीं हो सकती। महिला की गिरफ्तारी के समय पुलिस के साथ महिला कांस्टेबल का होना नितांत आवश्यक है। उन्होंने किशोरों की गिरफ्तारी और रिमांड आदि के बारे में व्यापक जानकारी दी। बताया कि गिरफ्तारी के समय पुलिस मेमोरेंडम भरा जाना और उसमें उस क्षेत्र के रहने वाले कोई दो व्यक्तियों के हस्ताक्षर जरूरी हैं। यह कानूनी अनिवार्यता है।
प्रधान न्यायाधीश हरेंद्र प्रसाद ने रिमांड की अवधि आदि के बारे में जानकारियां दीं। सिविल जज सीनियर डिवीजन भारतेंदु प्रकाश ने बताया कि मुफ्त कानूनी सहायता के लिए तीन लाख रुपये आमदनी की सीमा होना प्रासंगिक होगा। पहले यह धनराशि एक लाख थी। सिविल जज सौरभ आनंद, अपर सिविल जज मनीषा साहू ने भी प्रशिक्षार्थी अधिवक्ताओं को प्री-अरेस्ट और अरेस्ट की बारीकियां बताईं। विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव अभिषेक कुमार व्यास ने बताया कि यह प्रशिक्षण राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, लखनऊ और जनपद न्यायाधीश राधेश्याम यादव के निर्देश पर आयोजित किया गया। संचालन प्राधिकरण के काउंसलर डा.जनार्दन प्रसाद त्रिपाठी ने किया। सचिव ने सभी का आभार जताया। प्राधिकरण कार्यालय की कविता अग्रहरि, राशिद
अहमद अंसारी, नासिर अहमद आदि उपस्थित रहे।
अपर जिला जज तृतीय कृष्ण यादव ने प्री-अरेस्ट और अरेस्ट के दौरान विधिक सेवाएं देने की जानकारियां अधिवक्ताओं को दीं। साथ ही इन दोनों अवस्थाओं में पुलिस की भूमिका के बारे में बताया। अधिवक्ताओं की जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। अपर जिला जज चतुर्थ रामकरन ने यह जानकारियां दीं कि किन परिस्थितियों में और किसे गिरफ्तार किया जा सकता है। अपर जिला जज पंचम मोहम्मद रिजवान अहमद ने बताया कि रात में किसी महिला की गिरफ्तारी नहीं हो सकती। महिला की गिरफ्तारी के समय पुलिस के साथ महिला कांस्टेबल का होना नितांत आवश्यक है। उन्होंने किशोरों की गिरफ्तारी और रिमांड आदि के बारे में व्यापक जानकारी दी। बताया कि गिरफ्तारी के समय पुलिस मेमोरेंडम भरा जाना और उसमें उस क्षेत्र के रहने वाले कोई दो व्यक्तियों के हस्ताक्षर जरूरी हैं। यह कानूनी अनिवार्यता है।
प्रधान न्यायाधीश हरेंद्र प्रसाद ने रिमांड की अवधि आदि के बारे में जानकारियां दीं। सिविल जज सीनियर डिवीजन भारतेंदु प्रकाश ने बताया कि मुफ्त कानूनी सहायता के लिए तीन लाख रुपये आमदनी की सीमा होना प्रासंगिक होगा। पहले यह धनराशि एक लाख थी। सिविल जज सौरभ आनंद, अपर सिविल जज मनीषा साहू ने भी प्रशिक्षार्थी अधिवक्ताओं को प्री-अरेस्ट और अरेस्ट की बारीकियां बताईं। विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव अभिषेक कुमार व्यास ने बताया कि यह प्रशिक्षण राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, लखनऊ और जनपद न्यायाधीश राधेश्याम यादव के निर्देश पर आयोजित किया गया। संचालन प्राधिकरण के काउंसलर डा.जनार्दन प्रसाद त्रिपाठी ने किया। सचिव ने सभी का आभार जताया। प्राधिकरण कार्यालय की कविता अग्रहरि, राशिद
अहमद अंसारी, नासिर अहमद आदि उपस्थित रहे।
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