करीब पांच महीने से दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बीमारी अभी लंबे समय तक हमारे जीवन का हिस्सा बनी रहेगी। इसलिए इससे लड़ने के लिए मौजूदा तौर-तरीके बदलने होंगे।
साइंस जर्नल लांसेट इंफेक्सियस डिजीज में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कांट्रेक्ट ट्रेसिंग के जरिये बीमारी की पहचान और रोकनाथ अब कठिन होने लगा है इसलिए टेस्टिंग की रणनीति बदलनी होगी।
दरअसल, कोविड के संक्रमण में लगातार इजाफा हो रहा है तथा पिछले 24 घंटों के दौरान भी दुनिया में रिकार्ड एक लाख नए संक्रमण सामने आए हैं। शुरुआत में जब बीमारी किसी देश में दस्तक देती थी तो संक्रमित के संपर्क में आए सभी लोगों की पहचान कर उनकी जांच की जाती थी। इसे कांट्रेक्ट ट्रेसिंग कहते हैं। लांसेट की रिपोर्ट अब इसे गैर जरूरी और असंभव मानती है।
प्रत्येक 14 दिन में रैंडम टेस्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि धीरे-धीरे वायरस के प्रति लोगों में हर्ड इम्यूनिटी पैदा होगी जिसका आकलन रैंडम टेस्टिंग से हो सकता है। यह प्रक्रिया आर्थिक गतिविधियों को जारी रखते हुए की जा सकती है। प्रत्येक 14 दिनों में ऐसी रैंडम टेस्टिंग हर स्थान पर होने से बीमारी के फैलाव का वास्तविक आकलन करना संभव होगा। जब तक इसकी दवा या टीका बनकर नहीं आ जाता तब तक बड़े स्तर पर कई तरीके से टेस्टिंग ही इसके खिलाफ लड़ाई का एकमात्र हथियार है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़े पैमाने पर टेस्टिंग की जरूरत है। एक तो बीमार लोगों की आरटीपीसीआर टेस्टिंग हो। दूसरे, जो लोग बिना उपचार के ठीक हो चुके हैं, उनकी पहचान के लिए आईजीजी तथा आईजीएम एंटीबाडीज टेस्टिंग की जानी चाहिए। बीमारी का प्रकोप कितना है तथा कहां फैल रही है, इसका पता लगाने के लिए आबादी के समूहों की रैंडम टेस्टिंग होनी जाहिए। चार में से एक व्यक्ति की टेस्टिंग से बीमारी का आकलन किया जा सकता है तथा फैलने से रोका जा सकता है।
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